कोसिर में धूमधाम से मनाया गया भोजली का त्यौहार
ब्रह्मोस न्यूज़ कोसीर।प्रकृति प्रेम और खुशहाली से जुड़ा है भोजली तिहार सांस्कृतिक नगरी कोसीर में उत्साह के साथ भोजली तिहार धूमधाम से मनाया गया । गांव के बांधा तालाब में विधि विधान के साथ पूजा अर्चना कर विसर्जन किया गया ।
छत्तीसगढ़िया पर्व भोजली तिहार रक्षाबंधन के दूसरे दिन मनाया जाता है। इस साल भी छत्तीसगढ़ में रक्षा बंधन के दूसरे दिन यानी मंगलवार 20 अगस्त ,21 अगस्त को अलग अलग जगह में भोजली त्यौहार हर्षोल्लास के साथ मनाया गया। भोजली तिहार को मित्रता दिवस के रूप में भी मनाया जाता।
भारत के अनेक प्रांतों में सावन महीने की सप्तमी को छोटी॑-छोटी टोकरियों में थालियों में मिट्टी डालकर उनमें अन्न के दाने बोए जाते हैं। ये दाने धान, गेहूँ, जौ के हो सकते हैं। ब्रज और उसके निकटवर्ती प्रान्तों में इसे ‘भुजरियाँकहते हैं। इन्हें अलग-अलग प्रदेशों में इन्हें 'फुलरिया
, ‘धुधिया, 'धैंगा
और ‘जवारा`(मालवा) या भोजली भी कहते हैं। तीज या रक्षाबंधन के अवसर पर फसल की प्राण प्रतिष्ठा के रूप में इन्हें छोटी टोकरी या गमले में उगाया जाता हैं। जिस टोकरी या गमले में ये दाने बोए जाते हैं । उसे घर के किसी पवित्र स्थान में छायादार जगह में स्थापित किया जाता है। उनमें रोज़ पानी दिया जाता है और देखभाल की जाती है। दाने धीरे-धीरे पौधे बनकर बढ़ते हैं। महिलायें उसकी पूजा करती हैं एवं जिस प्रकार देवी के सम्मान में देवी-गीतों को गाकर जवांरा– जस – सेवा गीत गाया जाता है। वैसे ही भोजली दाई (देवी) के सम्मान में भोजली सेवा गीत गाये जाते हैं। सामूहिक स्वर में गाये जाने वाले भोजली गीत छत्तीसगढ की शान हैं। खेतों में इस समय धान की बुआई व प्रारंभिक निराई गुडाई का काम समापन की ओर होता है। किसानों की लड़कियाँ अच्छी वर्षा एवं भरपूर भंडार देने वाली फसल की कामना करते हुए फसल के प्रतीकात्मक रूप से भोजली का आयोजन करती हैं।