राज्य के गौरव पद्मश्री उषा बारले सांस्कृतिक नगरी कोसीर में गुरु घासीदास समारोह में देंगे प्रस्तुति
लक्ष्मी नारायण लहरे
ब्रह्मोस न्यूज सारंगढ़ । जिला मुख्यालय सारंगढ़ के सांस्कृतिक नगरी मां कौशलेश्वरी की पावन धरा कोसीर में 22 नवंबर को पंडवानी की प्रस्तुति देने के लिए संत गुरु घासीदास जी के 03 दिवसीय जयंती समारोह में शामिल होंगी । उनकी गायकी का अंचल में चर्चा है । यह पहला मौका है गांव के लोग उन्हें मिल सकेंगे और सुन सकेंगे । पद्मश्री उषा बारले जी को 22 नवंबर 2024 को कोसीर गांव सहित अंचल के लोग मिल भी पाएंगे । मेरी भी कोशिश रहेगी कि पद्मश्री से मिल सकूं अगर संभव नहीं हुआ तो दूर से ही देख सकूं पर और पद्मश्री का गांव में आगमन पर उनके मान सम्मान के साथ स्वागत और अभिवादन हो वे हमारे राज्य के गौरव हैं उनके सम्मान गांव का सम्मान है । पद्मश्री बारले जी की जन्म से लेकर पद्मश्री तक की सफर बहुत उतार -चढ़ाव रहा ।
उनकी इतिहास पर एक नजर
तीजनबाई जी की तरह ही छत्तीसगढ़ की शान हैं ऊषा बारले, मिल चुका है पद्मश्री सम्मान…
तीजनबाई की तरह ही छत्तीसगढ़ की शान हैं। ऊषा बारले, मिल चुका है। पद्मश्री सम्मान तीजनबाई के बाद पंडवानी शैली में सबसे बड़ा नाम ऊषा बारले हैं । छत्तीसगढ़ के दुर्ग में रहने वाली ऊषा ने अब तक 1 हजार से अधिक मंचों पर अपने कार्यक्रमों की प्रस्तुति दी है। उन्हें भारत सरकार ने 2023 में पद्मश्री से भी सम्मानित किया है ।
पंडवानी शैली में गायन की जब भी बात होती है तो जो सबसे पहला नाम सामने आता है । वो है- तीजनबाई का उन्होंने दुनियाभर में इस गायन शैली को मशहूर किया ।अब उन्हीं के पद चिन्हों पर चल कर उनकी ही शिष्या ऊषा बारले इस शानदार गायन शैली को आगे बढ़ा रही हैं। तीजन बाई जी पद्मभूषण से सम्मानित हुई हैं तो ऊषा को भी सरकार ने 2023 में पद्मश्री से सम्मानित किया है महज सात साल की उम्र से पंडवानी गीतों को गा रही ऊषा फिलहाल दुर्ग में रहती हैं और 45 सालों से देश ही नहीं बल्कि विदेश के 12 देशों में अपनी कला को पेश कर चुकी हैं।यह ऊषा की शख्सियत का कमाल ही है कि देश के गृहमंत्री अमित शाह भी उनसे मिलने उनके घर पहुंचे थे। खुद प्रधानमंत्री मोदी भी उनकी तारीफ कर चुके हैं।
7 साल की उम्र सीखा
2 मई 1968 को भिलाई में जन्मी उषा बारले ने महज 7 साल की उम्र में इस गीत को सीखना शुरू कर दिया था। उनके पहले गुरु उनके फूफा थे लेकिन बाद में उन्होंने तीजन बाई से इस कला की बारीकियां सीखीं. परिस्थितियों की वजह से वे चौथी क्लास से आगे नहीं पढ़ पाईं। शुरू में उनके परिवार को उनका गाना ,गाना पसंद नहीं था। खासकर उनके पिता को एक दिन तो गुस्से में उनके पिता ने भिलाई के शारदा पारा स्थित कुएं में फेंक दिया । इत्तेफाक से कुएं में पानी कम था तो ऊषा बच गईं।बाद में उनके परिजनों ने बाल्टी और रस्सी की मदद से उन्हें बाहर निकाला। इन परिस्थितियों के बावजूद ऊषा ने हार नहीं माना और गायन को जारी रखा। मेहनत का फल दिखा और हर गुजरते वक्त के साथ उनकी कला निखरती गई।अब तक वे भारत के अलावा न्यूयॉर्क, लंदन और जापान सहित 12 देशों में एक हजार बार कार्यक्रम की प्रस्तुति दे चुकी हैं।वे छत्तीसगढ़ के समाजिक मुद्दों को लेकर भी सक्रिय रहती हैं। साल 1998 में विद्याचरण शुक्ल के नेतृव में मध्यप्रदेश शासनकाल में छत्तीसगढ़ प्रदेश बनाने की मांग को लेकर दिल्ली के जंतर मंतर में धरना प्रदर्शन के दौरान दिल्ली पुलिस ने ऊषा बारले समेत अन्य लोगो को गिरफ्तार किया था। जाहिर है ऊपा जैसी शख्सियत पर छत्तीसगढ़ को गर्व है।
ऊपा बारले को मिले सम्मान
छत्तीसगढ़ भुईयां सम्मान,
चक्रधर सम्मान,
मालवा सम्मान,
दाऊ महासिंग चंद्राकर सम्मान,
मिनीमाता सम्मान
2006 गणतंत्र दिवस पर सम्मान,और 2023 में
पद्मश्री सम्मान से सम्मानित हो चुकी हैं
लक्ष्मी नारायण लहरे “साहिल”
साहित्यकार पत्रकार
कोसीर सारंगढ़